वक्त हाथों से भाग रहां है ऐसे
हम वही खड़े रह गए हो जैसे
हवा के झोके कानो मैं कुछ कह रहे है ऐसे
हम कुछ समझ न पा रहे हो जैसे
आसमान ख़ुद झुक रहां है ऐसे
छुने को हाथ भी न बड़ा पा रहे हो जैसे
जिंदगी मुठी मैं सिमट आई है ऐसे
उसे भी पकड़ न पा रहे हो जैसे
किसी मोर पर आ कर खड़े है ऐसे
कदम भी साथ न दे रहे हो जैसे
किसी एक को पाने की खुशी है ऐसे
सबको खो देने का गम हो जैसे
P.s. I still have confusion in "aise" and "jaise".
lovely :)
ReplyDeletehindi poems....neva m cup of tea...or coffee
ReplyDeletecan neva express them....
and astounding work gal