सूरज के जाते ही
सांझ ने डेरा डाल लिया
चुपके से अंगड़ाई लेते हुए फिर
चाँद आ गया
देने तपती गर्मी से राहत
बढाने उन दोनों के बीच चाहत
शरमाते इठलाते हुए लो फिर
चाँद आ गया
मुझसे नहीं उन तारो से पूछो
उस नदी उस किनारों से पूछो
पुछो उन बच्चो से और उनकी माँ से
रोज़ क्यों करते हैं वो इंतज़ार चाँद का
तारो को गगन में सजाने
नदी को शीतल बनाने ,नाव को किनारे पहुचाने
बच्चो को उनके पिता और
उस माँ को अपने पति से मिलाने
फिर चंचल सा भोला सा
चाँद आ गया
सबको मिलाता सबको अपनाता
चैन की नींद दिलाता हैं
अगले दिन फिर मज़िल को
पाने निकलना हैं
ये बतलाता हैं
एक दिन एसा भी आता हैं
जब चाँद नहीं आता हैं
तब ना तारे ,ना नदी ,ना किनारे ,
ना बच्चे ,ना माँ घबराती हैं
क्योंकि अँधेरे के बाद फिर उजाला
आता हैं और
मुस्कुराते हुए फिर से
चाँद आता हैं ......
(चिराग)
nice imagery. good one!
ReplyDeletenice imagery! good one!
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