February 15, 2009
इन्तेज़ार
किसीके इन्तेज़ार में
बय्ठे हैं हम राहों में
बरसो बीत गये
ना कोई आया
ना आँखों के समीप
नाही मेरे खयालों में ॥
प्यार तो नहीं था
पर प्यार के ही राहों में हम थे,
ना ज़मीन, ना आसमान था
हर जगह बस हम ही हम थे ।
साहिलों में बय्ठे हुए
उस पार सुरजको डूबते और निकलते हुए देखा
बंध मुट्ठी मे से जैसे रेत निकलती हो
कित्ने ही लम्हे हमने वैसे फिसलते हुए देखा ।
किसीके इन्तेज़ार में
बय्ठे हैं हम राहों में
खूब रोये
पर किसीने याद नहीं की
ना बयठाया पलकों पे किसीने
नाही अपने बाहों में ॥
Also Posted in Thus Wrote Tan!
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acchi koshish hai
ReplyDeletebut kafi sudhar ki jarurat hai
likhate raho and hindi newspaper padho
kafi madad milegi
so sweet .. loved it a lot ... somehow i felt it closely ...
ReplyDeleteI loved it tan...an endless wait..
ReplyDelete@ Chirag
ReplyDeleteधन्यबाद... तुम्हारी हर बात मुझे अच्छी लगी. ज़ाहिर है मुझे बहोत help करेगा आगे लिखने में. हिन्दी पत्रिका तो पड़ नही पता, क्योंकि यहाँ मिलता नही ... Suggest करने के लिए धन्यबाद.
मेरी एक और बिनती है चिराग, तुम मेरे कविता blog में जाके अगर थोड़ा वक्त बिताओ और एक आध टिपण्णी दे सको तो बहोत बेहतर होगा. तुम्हारी मदद से ज़रूर मेरा फायदा ही होगा. मैं इंतज़ार करूँगा तुम्हारी, मेरे ब्लॉग Thus Wrote Tan!पर ||
@ Pratibha and I,M&M
ReplyDeleteThanks for reading it. I'm happy to be able to connect it to you ... Keep reading me ... :)
i 'd read it tan when it was posted earlier.. loved it! :)
ReplyDeleteThanks Kajal ... You are probably the only one who visits my blogs and read me religiously!
ReplyDeleteThanks for the encouragement ... keep reading and I will write more - as promised!!
that was really lovely..
ReplyDeleteThanks Ani ... thanks for reading!
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