चलते चलते मैं रुक जाती हूँ,.
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
मुड़ के एक बार देख लेती हूँ,
अगर भूल जाती हूँ,
कि अकेले ही तो चली थी,
दिल को फिर समझाती हूँ,
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
कभी कोई तितली मिल जाती है,
तो पल भर को ठहर जाती हूँ,
नज़र भर को देख लेती हूँ,
अगर भूल जाती हूँ,
कि कई रंग है बेरंग दुनिया के,
एक नया रंग देख पाती हूँ,
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
कभी कोई नदी आ जाती है,
तो उसके साथ हो लेती हूँ,
फिर मोड़ पे अकेली हो जाती हूँ,
अगर भूल जाती हूँ,
की सब साथी नही सफ़र के,
फिर एक साथी छोड़ जाती हूँ,
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
कभी ठोकर लग जाती है,
तो गिर के संभल जाती हूँ,
कई बार रास्ता ही बदल जाती हूँ,
अगर भूल जाती हूँ,
कि लंबा सफ़र है, जल्दी नही अच्छी,
कुछ देर ठहर जाती हूँ,
अगर बहुत मैं थक जाती हूँ.
चलते चलते मैं रुक जाती हूँ,.
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
मुड़ के एक बार देख लेती हूँ,
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
मुड़ के एक बार देख लेती हूँ,
अगर भूल जाती हूँ,
कि अकेले ही तो चली थी,
दिल को फिर समझाती हूँ,
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
कभी कोई तितली मिल जाती है,
तो पल भर को ठहर जाती हूँ,
नज़र भर को देख लेती हूँ,
अगर भूल जाती हूँ,
कि कई रंग है बेरंग दुनिया के,
एक नया रंग देख पाती हूँ,
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
कभी कोई नदी आ जाती है,
तो उसके साथ हो लेती हूँ,
फिर मोड़ पे अकेली हो जाती हूँ,
अगर भूल जाती हूँ,
की सब साथी नही सफ़र के,
फिर एक साथी छोड़ जाती हूँ,
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
कभी ठोकर लग जाती है,
तो गिर के संभल जाती हूँ,
कई बार रास्ता ही बदल जाती हूँ,
अगर भूल जाती हूँ,
कि लंबा सफ़र है, जल्दी नही अच्छी,
कुछ देर ठहर जाती हूँ,
अगर बहुत मैं थक जाती हूँ.
चलते चलते मैं रुक जाती हूँ,.
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
मुड़ के एक बार देख लेती हूँ,
अगर बहुत दूर चली आती हूँ.
P.S. Writing in hindi after ages..feel free to correct my mistakes :)
superb ...poem
ReplyDeletegreat poem!! no mistakes yaar
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